किताबों से बचकर गुजरा नही जा सकता, ऐसा मैं मानता हूँ जैसे किसी बागीचे से गुजरते हुये हम फूलों की खुश्बू से बच नही सकते उसी तरह किताबें से नही बच सकते जीवन का निचोड़ होती हैं......... किताबें। रोजमर्रा की जिन्दगी में एक बार संतोष नही मिले, यश नही मिले, लेकिन किताबों से सामना हो ही जाता है।

कितनी ही ऐसी किताबें हैं जो अपने स्थानीय स्तर पर या कभी यूँ ही सिमटे हुये सर्क्यूलशन की वज़ह से वहाँ तक नही पहुँच पायी जहाँ उन्हें होना था वो आज भी अंजान हैं । हर एक किताब जीवन जीने के तरीके में बदलाव लाती है या जीवन के और करीब ले जाती है। इस ब्लॉग में ऐसी ही किताबों का जिक्र है मैंने जिन्हें पढ़ा, गुना या जिनसे जीवन जीना सीखा है, या मुझे पढ़ने को मिली और वो आपकी भी मदद कर सकेंगी............. इसी भावना से उनका जिक्र होना चाहिये बस यही प्रयास है...........।























शुक्रवार, 11 मार्च 2011

काव्य संग्रह बदल मीच घडविणार( परिवर्तन मैं ही गढूंगा) का विमोचन

किताबों में अजीब सी कशिश होती है मेरा उनके प्रति आकर्षण कभी कम नही होता है। इस ब्लॉग "किताबों के बारास्ता" के माध्यम से मैं जो पढ़ रहा हूँ उन किताबों का अनुभव आप सब से बाँटना चाहता हूँ।

इसकी पहली पोस्ट की शुरूआत मैं कर रहा हूँ श्री नरहरि प्रभाकरराव वाघ के पहिले मराठी काव्य संग्रह "बदल मीच घडविणार" ( परिवर्तन मैं ही गढूंगा) से। जिसे प्रकाशित किया है पुणे के श्री प्रवीण मूथा (सान्प्रा कॉम्प्यू फार्मस प्रा. लिमिटेड़) ने कुल पृष्ठ संख्या 172, संग्रहित कवितायें 110 और 75 चारोळ्या (चार पंक्तियों की कवितायें) हैं, स्वागत मूल्य है रू. 175/-

मुझे आप  सबसे यह बाँटते हुये बड़ी खुशी होती है कि कहीं अप्रैल 2008 में मेरी श्री वाघ से मुलाकात एक बिजनेस विजिट में हुई थी प्रसंग था काईनेटिक मोटर कम्पनी लिमिटेड़ के ड्यू-डिलिजेंस को और श्री वाघ एक असेसर की हैसियत से वहाँ थे। गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा है कि "ख़ग जाने ख़ग ही की भाषा" ......ठीक उसी प्रकार मुझे यह समझते देर नही लगी कि साहित्य-प्रेम हमारे बीच सेतु है। हालांकि जिस विनम्रता से श्री वाघ अपने साहित्यसेवी होने का इंकार करते उतना ही मेरा विश्वास मज़बूत होता था। पिछले तीन सालों में न जाने कितने ही अवसर आये जहाँ ऑफिस हमारे ऊपर हावी था लेकिन इतने विरोधों/अंतर्विरोधों के बाद भी कविता ही थी जिसने आपसी/निज प्रेम को बनाये रखने में मदद की।
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परिचय : जन्म 17 दिसम्बर 1960 को सावली(सदोबा) तहसील आर्णी, जिला यवतमाल (महाराष्ट्र) के एक किसान परिवार में जिसके पास अपनी संपत्तियों में थोड़ी जीवन-आपूर्ती योग्य खेती और चार बच्चों(तीन बड़ी बहनों के अलावा मैं) थे। 1974 में गाँव के ही स्कूल में सातवीं तक शिक्षा पाने के पश्चात यवतमाल,अमरावती से होते हुये वारंगल(आंध्र-प्रदेश) से एम.टेक.(मैकेनिकल) तक शिक्षा प्राप्त की।

करीब-करीब 25 वर्षों के सेवाकाल में एक अभियंता(इंजिनियर) से लगाकर वरिष्ठ प्रबंधक की हैसियत से वालचंदनगर इंडस्ट्रीज लिमिटेड़, बजाज ऑटो लिमिटेड़(आकुर्डी) और अंततः महिन्द्रा एण्ड महिन्द्रा में विभिन्न पदों पर कार्य। इसके अतिरिक्त करीब सात माह का शिक्षण का अनुभव शासकीय तंत्र निकेतन(पुणे) और विश्वकर्मा इन्स्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी(पुणे) में अध्यापन कार्य।
विभिन्न सामाजिक संस्थाओं के माध्यम से जनजागृति, पर्यावरण संरक्षण, रक्तदान शिविर, व्याख्यान, ट्रैफिक सुरक्षा अभियानों में सक्रिय भागीदारी।


वर्तमान में श्री वाघ ने अपने आपको रोज की आपाधापी से मुक्त कर लिया है और अपने माता-पिता के नाम से एक चेरिटेबल ट्रस्ट को मूर्त रूप देने में जुटे हुये है। इस ट्रस्ट का उद्देश्य हैं कि गरीब मेधावी बच्चों के लिये एक विद्यालय का निर्माण जहाँ चरित्र निर्माण के साथ व्यवहारिक शिक्षा देते हुये उन्हें प्रतियोगी समाज में आत्मनिर्भर बनने का अवसर प्रदान करना।

उनके इस सदकार्य में यदि आपका सहयोग मिला तो हमसब समाज के नवनिर्माण में सहभागी होंगे, इसी आशा के साथ।


सम्पर्क सूत्र :
श्री नरहरि प्रभाकरराव वाघ
संस्थापक अध्यक्ष
लक्ष्मीप्रभाकरसुत चॅरीटेबल फाऊंडेशन
ए-2/3, शुभम पार्क, श्री स्वामी समर्थ नगर
सेक्टर 26, निगड़ी, प्राधिकरण
पुणे (महाराष्ट्र) 411044

मोबाईल : 094235-06367
ई-मेल : npwagh@gmail.com
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प्रस्तुत काव्य संग्रह बदल मीच घडविणार का विमोचन चिंचवड़(पुणे) के प्रो. रामकृष्ण मोरे प्रेक्षागृह में 22-दिसम्बर-2010 को संपन्न हुआ। मुझ अकिंचन को भी श्री वाघ से स्नेहभरा आमत्रंण मिला था किंतु ऑफिस ऐसे मौको पर एक मज़बूरी की तरह सदा ही साहित्यिक आयोजनों से दूर रखता आया है सो नही पहुँच पाया था। मैंने अपनी भावनायें एक भाव भरी पाती के माध्यम से उन तक पहुँचायी थी :-

सुकवि श्री नरहरि वाघ को समर्पित भावभरी पाती

उस,
पहली मुलाकात में
फिर न जाने कितने ही फोनकॉलों से
मैं
,

धीरे-धीरे जानने लगा था कि,
तुम

कहीं न कहीं उस किस्म के इन्सान हो
जो आजकल देखने को नही मिलती
अपनी बात,

को सीधे से कह लेना
किसी भी दबाव के आगे बिना झुके
बड़ी हिम्मत का काम होता है

मुझे,
यह सीखने को मिला
तुम्हारे समीप रहकर
आज,

तुम्हारे विचार
चिंतन से आगे जाकर
स्वांतसुखाय की निजता से मुक्त हो
जब पढ़े जायेंगे
बात दिल तक पहुँचेगी जरूर
सभी तक
उन तक भी जो बेखबर
तुम्हारे
,

तुम(कवि वाघ) होने से

मैं,
नही पहुँच पाऊंगा
रामकृष्ण मोरे प्रेक्षागृह
लेकिन
,

यह भावभरी पाती
तुम्हें समर्पित साक्षी बन सकें
उस अप्रतिम क्षण की
जब आदमी इन्सान बनता है
और पूजा जाता है
अपने इन्सान होने के लिये
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सादर,

मुकेश कुमार तिवारी



मुकेश कुमार तिवारी
दिनाँक
: 20-दिसम्बर-2010 / सुबह : 06:15

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चूंकि मैं हिन्दी भाषी हूँ और मराठी भाषा को केवल बोलचाल हेतु बोल-समझ-पढ़ सकता हूँ अतः इस संग्रह की कविताओं में निहित अर्थ तक पहुँचने के लिये मैं अपने मित्र श्री सदानन्द पिम्पळीकर की मदद ले रहा हूँ। अगली पोस्ट में आप तक कविताओं को लेकर पहुँचूंगा।
अभी इतना ही
 



5 टिप्‍पणियां:

Narahari P. Wagh ने कहा…

Dear Mukesh Ji,
( Please pardon me , I do not know how to use Devanaagari Script, hence kindly bear with me . I would have loved to write in Hindi / Marathi , but unable to do so. I am sure you would not mind the language since " Yeh Do Dilonka Rishtaa Hai"

I had never expected this to happen anytime especially so early after publication of the the book. I have no words to express the gratitude towards your affection, love and the efforts you took for this. I am delighted for your thoughts and I am grateful to Mr. Sadaanand Pimpalikar Saab for this, who is also taking lot of pains and efforts to support your endeavours.
I am sure the message will reach to many of our friends, well wishers and relatives in a very short time and very effectively.
Please accept my sincere and whole hearted thanks and also my heartfelt wishes to your maiden attempt. All the Best Sir............ Bravo.

There are two small corrections ( It looks like a typographical mistake)
1. The Birth Place is SAAWALI and Not SAAWAL.
2. The Publication ( Vimochan) date is 22.12.2010 and not 12.12.2010.

If you do not mind, kindly correct them at your leisure.

मुकेश कुमार तिवारी ने कहा…

प्रिय श्री नरहरि वाघ साहेब,

सुधार कर दिये गये हैं जी,

टाईपिंग की गलती के लिये क्षमाप्रार्थी हूँ।

मुकेश कुमार तिवारी

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

होली के पर्व की अशेष मंगल कामनाएं। ईश्वर से यही कामना है कि यह पर्व आपके मन के अवगुणों को जला कर भस्म कर जाए और आपके जीवन में खुशियों के रंग बिखराए।
आइए इस शुभ अवसर पर वृक्षों को असामयिक मौत से बचाएं तथा अनजाने में होने वाले पाप से लोगों को अवगत कराएं।

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

मुकेश जी भाषा न जानते हुए भी रचनाओं को अनुवाद करना
और पुस्तक समीक्षा करना बहुत बड़ी बात है ....
मुझे कई किताबें आ चुकी हैं समीक्षा के लिए पर मैं हिम्मत ही नहीं जुटा पा रही ..
समीक्षा करना मतलाब पुस्तक को बिलकुल बारीकी से पढ़ना ....

बहुत सी शुभकामनाएं आपको ....

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत सुंदर... जिस भाषा को आज जानते समझते हैं उसके बाद भी समीक्षा करना आसान नहीं होता, आपने तो कमाल ही कर दिया। बहुत बहुत शुभकामनाएं